'बेटी' की हुई चिंता तो बिकने लगे स्कूटर

'बेटी' की हुई चिंता तो बिकने लगे स्कूटर
देश में लड़कियों की सुरक्षा और स्कूटर की बिक्री के बीच क्या संबंध है? आप चौंक गए होंगे। लेकिन इनके बीच संबंध है। लड़कियों की सुरक्षा को लेकर राजधानी दिल्ली और अन्य शहरों में जैसे-जैसे गंभीर सवाल उठ रहें हैं, देश में स्कूटरों की बिक्री भी उतनी ही तेजी से बढ़ने लगी है। मां-बाप सार्वजनिक वाहन में बेटियों और बहुओं को भेजने के बजाय स्कूटर से भेजना पंसद कर रहे हैं। यही वजह है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान अभी तक मोटरसाइकिलों की बिक्री में लगभग तीन फीसद की बिक्री दर्ज की गई है, जबकि स्कूटरों की बिक्री 23 फीसद की रफ्तार से बढ़ी है। आज होंडा, हीरो, टीवीएस, सुजुकी को छोड़ दीजिए, सिर्फ दमदार व तेज रफ्तार मोटरसाइकिल बनाने वाली कंपनी यामाहा भी इस बाजार में उतर गई है। ऑटो एक्सपो-2014 में कम से कम दर्जन भर नए स्कूटर पेश किए गए हैं। स्कूटर बाजार में मुख्य मुकाबला हीरो और इसकी पूर्व सहयोगी होंडा के बीच ही है। हीरो ने स्कूटरों की तीन नई रेंज उतारने का फैसला किया है। इन्हें अगले दो वषरें के भीतर भारतीय ग्राहकों के समक्ष बिक्री के लिए रखा जाएगा। इसकी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी कंपनी होंडा भी कम नहीं है। भारतीय स्कूटर बाजार को नया जीवन देने वाली कंपनी होंडा अगले दो वषरें के भीतर तीन नए स्कूटी रेंज पेश करेगी। इनमें नई तरह की कई खास बातें होंगी, जो महिलाओं को ही ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं। यामाहा और टीवीएस की भी योजना ठोस तरीके से इस बाजार में आगे बढ़ने की है।

चलो तुम्हें पार्क में ले जाएं

चलो तुम्हें पार्क में ले जाएं
आजकल के दौर में बहुत से बच्चे टीवी, कंप्यूटर व इनडोर गेम्स में इतने मस्त रहते है कि न तो वे बाहर खेलने जाना चाहते है और न ही उनके माता-पिता के पास इतना समय होता है कि वे उन्हे बाहर घुमाने ले जाएं।
बाल मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि यह स्थिति बच्चों के मानसिक व शारीरिक विकास के लिए ठीक नहीं है। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को पार्क इत्यादि घुमाने अवश्य ले जाएं। बस कुछ बातों का ध्यान रखें।
- पार्क ले जाते समय बच्चों को मौसम के अनुकूल वस्त्र पहनाकर ले जाएं। पार्क ले जाने के दौरान बहुत महंगे कपड़े न पहनाएं अन्यथा आपको और बच्चों को हर वक्त धूल-मिट्टी से कपड़े खराब होने का डर बना रहेगा और बच्चा खुलकर खेल भी नहीं पाएगा।
- आप चाहें तो बच्चों के साथ परिवार के अन्य लोगों और पड़ोसी के बच्चों को भी ले जा सकती है। वह लोगों के साथ तालमेल बिठाना सीखेगा। इससे आपके बच्चे का मानसिक और सामाजिक विकास सही ढंग से होगा।
- जब भी बच्चे को पार्क ले जाएं, अपने साथ कुछ इंडोर गेम्स जैसे लूडो, छोटा सा कैरम बोर्ड, अन्य प्रकार के गेम्स और बैडमिंटन, फुटबाल आदि अवश्य ले जाएं।
- बच्चे के साथ स्वयं भी खेलें। इससे उसको यह महसूस होगा कि आप उसकी कितनी फिक्र करती हैं।
- पार्क जाते समय पानी की बोतल व खाने का कुछ सामान अपने साथ अवश्य ले जाएं। कई बार खेलते-खेलते बच्चों को भूख लग आती है। खाने का सामान साथ होने पर बच्चे को बाहर की खुली चीजें खरीदकर देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे उसका स्वास्थ्य भी सही रहेगा।
- झूला झूलते समय बच्चे के पास रहे और उस पर बराबर नजर रखें कि कहीं कोई दुर्घटना न हो जाए।
- पति की छुट्टी हो तो उन्हे भी साथ चलने को कहे। इससे बच्चों को आपके साथ समय बिताने में और मजा आएगा। साथ ही पति को भी कुछ बदलाव महसूस होगा।
- पार्क में अगर कर्मचारी है तो उनसे बच्चों की जान-पहचान अवश्य करवा देनी चाहिए, ताकि जरूरत पड़ने पर वे आपकी मदद कर सकें।
- बच्चों को घर से ही समझाकर ले जाएं कि पार्क में फूल-पली न तोड़े और न ही खाने-पीने की चीजें इधर-उधर फेंकें।
इला शर्मा

एडमिशन से पहले परखें स्कूल

एडमिशन से पहले परखें स्कूल
क्या आप अपने बच्चे का स्कूल में एडमीशन कराना चाहती हैं? यदि हां तो कुछ बातों को ध्यान में रखना अति आवश्यक है। सबसे पहले तो आप बच्चे की उम्र को लेकर अपना मन पक्का कर लें, क्योंकि आजकल दो से ढाई साल तक के बच्चों के प्री-स्कूल, प्री-टॉडलर्स बहुतायत में खुलने लगे हैं और कामकाजी माता-पिता के लिए ये बहुत उपयोगी भी साबित होते हैं। कई जगह तो 'क्रेच' (पालना घर) ही छोटे बच्चों के स्कूल बन गए हैं और 'डे बोर्रि्डग' स्कूल भी अब इन सब कमियों को अच्छे से पूरा करने में लग गए हैं।
-सबसे पहले बच्चे की उम्र वाले उपयोगी और निर्धारित स्कूलों का ही चयन करें।
-स्कूल की दूरी सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है।
-फिर आती है समस्या आने-जाने की। पैदल, रिक्शा, वैन, बस या आप स्वयं रोजाना बच्चे के साथ जा सकती हैं। कई जगह दादा-दादी या नाना-नानी भी यह भूमिका निभाते पाए जाते हैं।
-बच्चों को आपने 'टॉयलेट-ट्रेनिंग' (बाथरूम जाने की) दी है या नहीं। कई जगह यह जरूर पूछा जाता है।
-स्कूल का चुनाव अपने बजट के अनुरूप करें और अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार ही स्कूल का बजट बनाएं वरना बाद में आप परेशानी हो सकती हैं।
-स्कूल के क्लास रूम का वातावरण देखें।
-स्कूल की स्वास्थ्य सुविधाएं अवश्य देखें। वायु, रोशनी, धूप का समुचित प्रबंध स्कूल में होना अनिवार्य है।
-कक्षा में बच्चे अधिक न हों वरना टीचर्स प्रत्येक बच्चे पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान नहीं दे पाएंगे।
-खेलने की सुविधाएं मसलन सुरक्षित झूले, खेल का मैदान आदि जरूर हों।
-इंडोर एवं आउटडोर गेम्स का समुचित प्रबंध हो।
-आकर्षक और शिक्षाप्रद खिलौने हों।
-स्वीमिंग पूल सुरक्षित हो और शिक्षित ट्रेनर अवश्य हो।
-स्कूल में सुरक्षा के समुचित उपाय हों।
-पुस्तकालय (लाइब्रेरी), कम्प्यूटर आदि की उचित व्यवस्था हो।
-स्कूल का भवन कैसा है, ज्यादा सीढ़ी वाला, छोटा सा है, गली में है, ये सब बातें ध्यान में जरूर रखें।
-होम वर्क कैसे और कितना देते हैं? स्कूल में ही कराते हैं या अभिभावकों के ही जिम्मे होता है। ये सब जानकारी भी अवश्य करें।
-नियमित पैरेंट्स-टीचर्स मीटिंग होना भी स्कूल का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। अभिभावकों और अध्यापकों में संवाद कायम होना बच्चे और स्कूल दोनों के लिए फायदेमंद होता है।
-बच्चे को स्कूल भेजने से पहले घर में उसे शिष्टाचार, मैनर्स (तौर-तरीके) आदि भी जरूर सिखाती रहें। कई जगह तो सामान्य ज्ञान की अच्छी खासी परीक्षा ली जाती है, इस पर भी नजर रखें।
-कई विद्यालयों में तो मम्मी-पापा का भी 'इंटरव्यू' होने लगा है। आप इससे भयभीत न हों। अपने ऊपर विश्वास रखें, प्रश्नों के उत्तर सहजता और सरलता से दें, जो बातें आपको नहीं मालूम उसके लिए सॉरी बोलकर यह कह सकती हैं कि जल्दी ही आप सीख लेंगी।
-आजकल बहुत से स्कूलों में बच्चों का हेल्थ रिकार्ड भी रखा जाता है। इसके लिए बच्चे के वैक्सीनेशन कार्ड और हेल्थ फाइल की फोटो कॉपी अवश्य जमा करवा दें।