बलात्कार मामले पर 10 विवादास्पद बयान


बलात्कार के कारणों में महिलाओं को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश तो नहीं?
दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले में समाज के अलग-अलग क्षेत्र की जानी-मानी हस्तियों के बयानों ने मामले पर मरहम लगाने के बजाए विवादों को हवा दी है.
ये बयान तो अलग-अलग लोगों के हैं लेकिन सारे बयान एक ही सोच से प्रेरित नजर आते हैं.
ये सोच महिलाओं को भारतीय समाज में दोयम दर्जे का मानने से जुड़ी दिखती है. ऐसे ही दस बयानों पर एक नज़र.

आसाराम बापू, धार्मिक गुरु

केवल पांच-छह लोग ही अपराधी नहीं हैं. बलात्कार की शिकार हुई बिटिया भी उतनी ही दोषी है जितने बलात्कारी. वह अपराधियों को भाई कहकर पुकार सकती थी. इससे उसकी इज्जत और जान भी बच सकती थी. क्या ताली एक हाथ से बज सकती है, मुझे तो ऐसा नहीं लगता.

मोहन भागवत, राष्ट्रीय स्वयं सेवक प्रमुख

आप देश के गांवों और जंगलों में देखें जहां कोई सामूहिक बलात्कार या यौन अपराध की घटनाएं नहीं होतीं. यह शहरी इलाकों में होते हैं.

कैलाश विजयवर्गीय, बीजेपी नेता और मंत्री, मध्य प्रदेश सरकार

महिलाओं को ध्यान रखना होगा कि उन्होंने लक्ष्मण रेखा लांघी तो रावण सामने होगा. इसलिए उन्हें मर्यादा में रहना चाहिए.

अभिजीत मुखर्जी, कांग्रेस सांसद और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे

हम भी छात्र रहे हैं और कॉलेज गए हैं, जानते हैं कि कॉलेज के बच्चे कैसे होते हैं. रात में डिस्को जाना और दिन में कैंडल लेकर सड़कों पर उतरना फैशन हो गया है. सुंदर-सुंदर महिलाएं सज-धज कर बच्चों के साथ विरोध करने आती हैं. मुझे तो नहीं लगता कि वे स्टूडेंट होती भी हैं.
( विवाद बढ़ने पर अभिजीत मुखर्जी ने इस बयान के लिए माफी मांग ली)

बनवारी लाल सिंघल, बीजेपी विधायक, अलवर

स्कूली छात्राओं के स्कर्ट पहनने से यौन उत्पीड़न के मामले बढ़ते हैं.

अनीता शुक्ला, कृषि वैज्ञानिक

दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले की पीड़िता को छह पुरुषों के सामने आत्मसमर्पण कर देना चाहिए था, इससे उसकी आंत निकालने की नौबत नहीं आती.
( ये बयान पीड़िता की मौत से पहले दिया गया था.)

अनीसुर रहमान, विधायक, पश्चिम बंगाल

हम ममता दी से पूछना चाहते हैं उन्हें कितना मुआवजा चाहिए. बलात्कार कराने के लिए वे कितना पैसा लेंगी.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बलात्कार पीड़ितों के लिए 20 हज़ार रुपये मुआवजे की घोषणा करने के बाद रहमान ने ये बयान दिया था.

अशोक सिंघल, अध्यक्ष, विश्व हिंदु परिषद

महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध इसलिए बढ़ते जा रहे हैं क्योंकि हम पश्चिमी सभ्यता की नकल कर रहे हैं.

बोत्सा सत्यनारायण, अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश कांग्रेस

भारत को आधी रात में आजादी मिली थी, इसका ये मतलब नहीं है कि महिलाओं को रात के अंधेरे में निकलना चाहिए. सामूहिक बलात्कार की पीड़िता को कुछ ही यात्रियों वाली बस पर नहीं चढ़ना चाहिए था.

ननकी राम कंवर, गृहमंत्री, छत्तीसगढ़

पता नहीं 2012 जाते-जाते क्या ले कर गया है..पूरा महिलाओं का चीरहरण समझ लीजिए..ग्रह के विपरीत होने का नुकसान हो सकता है.
इनके अलावा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने भी इस मसले पर एक विवादास्पद बयान दिया-
सभी बलात्कार-बलात्कार चिल्ला रहे हैं लेकिन सभी बलात्कारी बिहार के हैं ये कोई नहीं कह रहा है

क्या युवाओं में ज़्यादा ही आत्म विश्वास है?


शोध कहता है कि कामयाबी पाने की होड़ हर जगह मची है.
सफलता और आत्मविश्वास के बीच क्या कोई ताल्लुक़ है? इसी तरह के कुछ सवालों से जुड़े शोध में यह बात सामने आई है कि अमरीकी विश्वविद्यालय के ज्यादातर छात्र यह सोचते हैं कि वे बेहद ख़ास हैं.
आमतौर पर आत्मसम्मान को अच्छा माना जाता है लेकिन अगर ख़ुद के प्रति ऐसी भावना ज्यादा बढ़ जाए तो क्या ऐसी सोच सफलता की राह में बाधा भी बन सकती है? इस बारे में कई तरह की राय ज़ाहिर की गई है.

आत्मविश्वास या गु़मान?

पिछले चार दशक में नाटकीय तौर पर ऐसे छात्रों की संख्या में इज़ाफ़ा़ हुआ है जो शैक्षणिक योग्यता, सफलता पाने की लगन, गणितीय क्षमता और आत्मविश्वास के लिहाज़ से ख़ुद को 'औसत से ऊपर' आंकते हैं.
सफलता
शोध से पता चला कि लोग पढ़ने में ज्यादा वक्त बिताकर सफल होने का दावा कर रहे हैं
अमरीका की मनोवैज्ञानिक जीन ट्वेंगी और उनकी सहकर्मियों ने सर्वेक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण किया है.
शोध में पाया गया कि स्व-मूल्यांकन की कुछ विशेषताएं जो कम व्यक्तिपरक होती हैं, मसलन सहयोग करने की भावना, दूसरों को समझने और आध्यात्मिकता जैसे गुण वक़्त के साथ बदले हैं या कम हुए हैं.
ट्वेंगी कहती हैं कि फ्रेशमैन सर्वेक्षण भले ही दर्शाता हो कि छात्रों में यह भावना बढ़ रही है कि उनमें लेखन क्षमता है लेकिन सामान्य मूल्यांकन से भी यह अंदाज़ा मिल जाता है कि 1960 के दशक के बाद वास्तव में छात्रों की लेखन क्षमता घटी है.
1980 के दशक के आख़िर में लगभग आधे छात्रों का कहना था कि उन्होंने एक हफ्ते में छह या इससे ज्यादा घंटे पढ़ाई की लेकिन वर्ष 2009 तक इस आंकड़े में एक-तिहाई इज़ाफ़ा हुआ. इसके साथ ही इस दौरान वैसे छात्रों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ जिन्होंने ख़ुद सफल होने का दावा किया.

आत्ममुग्धता है घातक

ट्वेंगी के एक दूसरे अध्ययन के मुताबिक़, 1979 के बाद से अमरीकी छात्रों में आत्मकेंद्रित होने और आत्ममुग्धता की भावना 30 फ़ीसदी तक बढ़ी है. कई लोगों का तर्क है कि यह ज़रूरी भी है लेकिन ट्वेंगी और उनकी सहकर्मी इसे नकारात्मक और घातक मानती हैं.
ट्वेंगी का कहना है, ''हमारी संस्कृति सुशील और नम्र व्यवहार को प्रोत्साहित करती है और ख़ुद के बारे में शेख़ी बघारने की भावना को अच्छा नहीं माना जाता.''
उनका कहना है कि परवरिश के बदलते तरीक़े, मशहूर होने की बढ़ती ख्वाहिश, सोशल मीडिया और आसानी से क़र्ज़ मिल जाने की वजह से लोग जितने सफल हैं, उससे कहीं ज्यादा सफल नज़र आते हैं, इस तरह आत्मकेंद्रित और आत्ममुग्ध होने की भावना बढ़ रही है.
सफलता
शोध से पता चला कि लोगों में आत्मकेंद्रित होने की भावना बढ़ रही है
पिछले दो दशक में ज्यादा आत्मविश्वास, खु़द को प्यार करने और खु़द पर यक़ीन करने की भावना को ही सफलता का मूलमंत्र मान लिया जाता है. दिलचस्प बात यह है कि यह भरोसा बड़ी मज़बूती से स्थापित हो रहा है.

कैसे मिली प्रेरणा

कई किताबों से भी ऐसे विचारों को बल मिला है कि हमारे अंदर यह ख़ूबी है कि हम बड़ी सफलता हासिल कर सकते हैं, हमें खु़द में बस थोड़ा और आत्मविश्वास लाने की ज़रूरत है.
क़रीब 15,000 जर्नल ने भी अपने लेख में आत्म-सम्मान की बढ़ती भावना और वास्तविक ज़िदगी की सफलता मसलन शैक्षणिक सफलताएं, रोज़गार के मौक़े, लोकप्रियता, बेहतर स्वास्थ्य, खु़शी, क़ानून और सामाजिक नियमों को समर्थन देने की भावना के बीच ताल्लुक़ को समझने और विश्लेषण करने की कोशिश की है.

सफलता की दर

हालांकि ऐसे प्रमाण कम ही मिले हैं कि आत्म-सम्मान बढ़ने से सकारात्मक नतीजे और ठोस सफलता मिलती है.
ट्वेंगी कहती हैं, ''आपको यह भरोसा करना होता है कि आप कुछ कर सकते हैं और इसका मतलब यह क़तई नहीं है कि आप ख़ुद को महान मानने लगें.''
उन्होंने एक मिसाल दी है कि अगर कोई व्यक्ति तैराकी सीखने की कोशिश कर रहा है तो उसका यह भरोसा उसके लिए घातक हो सकता है कि वह बेहतरीन तैराक है.